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आपके विचारों से मैं सहमत हूं। आधुनिक समाज में संस्कारविहीनता इसके लिए दोषी है। परिवार के बच्चों में शुरू से संस्कारों का पोषण ना होने की वजह से हमारी भावी पीढ़ी संस्कार विहीन होती जा रही है।
दरअसल इसके लिए सामाजिक व्यवस्था जिम्मेदार है घर में बड़े बूढ़ों का अभाव या उनका परिवार में सामंजस्य न होने के के कारण बच्चों में संस्कार का पोषण नहीं हो पाता। पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से बदलते सामाजिक परिवेश में संस्कार एवं सांस्कृतिक मूल्यों के मायने बदल गए हैं। रिश्तोंं का आकलन हैसियत के आधार पर किया जाता है। रिश्तोंं का आधार धन-संपत्ति बनकर रह गया है। संतानों द्वारा माता पिता के लिए आदर का भाव कम हो गया है। उनके लिए माता-पिता का त्याग एवं बलिदान जो उनके पालन पोषण में किया गया है मात्र एक कर्तव्य का निर्वाह है। जिसे उनके द्वारा उसी प्रकार कर्तव्य पालन करते हुए पैसे से पूरा किया जा सकता है जिसमें भावना का कोई महत्व नहीं है। कई बार यह भी देखा गया है कि बच्चे मां बाप की अवहेलना करते हैं और उनको भावनात्मक ठेस पहुंचाते रहते हैं।
यह बहुत ही दुःःखद स्थिती है।
जब तक इस प्रकार की मानसिकता से हटकर चिंतन नहीं किया जाता तब तक स्थिति में सुधार की संभावना नहीं हो सकती।

धन्यवाद !

22 Jul 2020 07:23 PM

जी बहुत बहुत आभार, प्रणाम

बहुत सुंदर रचना

22 Jul 2020 03:04 PM

ये मन की यथार्थ पीड़ा है,जो आगे नासूर बनेगी।

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