Comments (4)
3 Jul 2020 10:13 PM
उम्दा ग़ज़ल दोस्त
Arsh M Azeem
Author
5 Jul 2020 02:38 PM
शुक्रिया दोस्त
फ़ित्ने की नदी में नाव खेता हूं मैं।
धोखे की हवा में सांस लेता हूं मैं।
इतने कोई दुश्मन को भी देता नहीं जुल।
जितने खुद को फरेब देता हूं मैं।
श़ुक्रिया !
बहुत ख़ूब