मर्यादा पुरुषोत्तम राम के मानव रूप में अवतरित होने के दो पक्ष है । प्रथम शापित रघुवंश की मुक्ति का तथा आततायी रावण से त्रस्त जनों का तारण एवं रावण की मुक्ति तथा पिता के माता केकयी को दिए वचन का निर्वाह। रावण से न्यायोचित युद्ध कर बंदी पत्नि सीता की मुक्ति। दूसरा पक्ष उनका एक राजा के रूप में मर्यादा का निर्वाह जिसमें प्रजा की समस्त शंकाओं का समाधान करना सम्मिलित है। जो एक मानव रूप में राजा का कर्तव्य होता है। इसका यह निष्कर्ष नही निकालना चाहिए कि उनको सीता के पवित्र चरित्र पर लेश मात्र भी संदेह था और वे सीता के अंतर्मन की व्यथा से अनभिज्ञ थे। तथा वे एक मानव के रूप में प्रारब्ध को परिवर्तित करने की चेष्टा भी नहीं कर सकते थे। अतः एक मानव रूप में वे समस्त मर्यादाओं का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध थे।
अतः आपके श्री राम के प्रति संदेहों से मैं असहमत हूं।
धन्यवाद !
मैं खुद रघुवंशी क्षत्रिय हूँ लेकिन एक पति के रूप में प्रभु श्री राम से मैं कुछ प्रश्न हैं मेरे पास जो मैं अपना अधिकार समझती हूँ… आपके विचारों का स्वागत है…प्रभु के लिए और भी लिखा है पढ़ कर राय अवश्य दिजियेगा ।
क्या बात है वाह
बहुत आभार ?