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वक़्त के एक झोंके से श़िद्दत से खड़े किए गए महल भी ढहकर बिखर जाते हैं । इंसानी वुजूद भी खतरे में होता है जब कुफ़्र सर चढ़कर बोलता है।
श़ुक्रिया !
सुंदर पंक्तियां। धन्यवाद जी
वक़्त के एक झोंके से श़िद्दत से खड़े किए गए महल भी ढहकर बिखर जाते हैं ।
इंसानी वुजूद भी खतरे में होता है जब कुफ़्र सर चढ़कर बोलता है।
श़ुक्रिया !
सुंदर पंक्तियां।
धन्यवाद जी