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आपकी शायरी को मैंने अपने इज़हार ए अंदाज में पेश किया है कुबूल हो :

सच्ची मोहब्बत कभी बिकती नहीं चाहे बेच भी लो अपने ईमान को।
ये वो नाय़ाब तोहफ़ा है जो मय़स्सर है किस्मत से इंसान को।
कुछ तुम्हारी बंदिशे की कुछ थे मेरे दायरे ।
जब मुक़द्दर ही दुश्मन बने तो कोई आखिर क्या करें।
शीशा ए दिल में छुपा है ऐ सितम़गर तेरा प्यार।
जब जरा गर्दन झुकाई देख ली तस्वीर ए यार।
दिल मे जो छुपा के रखी है तेरी तस्वीर।
ये सिर्फ तस्वीर नहीं छुपा के रखी है मैंने अपनी तक़दीर।
मैंने तेरे लिए अपने दिल को बहुत संभाल कर रखा है।
सुना है घूम रहे हैं दिल को चुराने वाले इन आश़िकों के बाज़ार में।
जुनूऩ ए इश्क़ में हम पर्वतों से टकराने का हौसला रखते हैं।
तेरी एक मुस्क़ुराहट पर हर गम़ भूल कर जान भी फ़िदा कर सकते हैं।
मुझे संगदिल न समझो दिल मेरा शीशे सा नाज़ुक है , बेरुखी की चोट से से टूट कर बिखर कर रह जाएगा।
वो मेरी ग़ज़ल बन गए हम उन्हें गुनगुनाते मंजिल दर मंजिल गुजरते गए वो हमारी यादों में मुस्कुराते रहे।
काटे नहीं कटती ये तन्हाई बेचैन दिल लिए
फिरता हूं ।
तेरी एक झलक को बेताब रहता हूं ।
तेरी रानाई के एहसास में डूब जाना चाहता हूं।

श़ुक्रिया !

इसमें आपने ईमान को बेच कर के स्थान पर ईमान को भी कुर्बान किया मोहब्बत की ख़ातिर पर उसका सिला नहीं मिला लिखना चाहिए था।
क्योंकि मोहब्बत को खरीदने और बेचने का इज़हार सही नहीं लगता है।
क्योंकि मोहब्बत ऐसी चीज़ नहीं है खरीदी और बेची जा सकती है।

ईमान बेचने से तात्पर्य यहां सब कुछ अपना दांव पर लगाने से है ना कि बेचने से सर और खरीदने से क्योंकि जब कोई दूसरी जाति की लड़की से मोहब्बत करता है तो आज के परिवेश उसे कोई स्वीकार नहीं करता विरले ही ऐसे देखने को मिलेंगे जो उनको प्यार को स्वीकार कर ले
धन्यवाद सर

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