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महोदय !
आप अगर साहित्यकार्य में हैं, तो सहनशक्ति रखिये, व्यग्रता नहीं !
पहले ठीक से पढ़िए ! मैं तो उसी को कह रहा हूँ, जिसने हिंदी के नाम पर भेदभाव किया ! न्यायालय में बहस तक हिंदी में नहीं हो रही ! आप अपने बच्चे को हिंदी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ाते है न ! …..और आप भी भेदभाव कर रहे हैं ! आप ही कौन सी हिंदी का भला कर रहे हैं, अंग्रेजी में अपना परिचय देकर !

ऐसा प्रतीत होता है कि आपने हिंदी भाषा का अपमान करने की ठान रखी है आपने हिंदी के विषय में आपत्तिजनक प्रस्तुति की हैंं जो निम्न है
१. पाली भाषा या ब्राह्मणत्व संस्कृत से विलग संस्कृत की गीदड़ी लोकभाषा लिए समाज से बहिष्कृत दलित बैकवर्ड की भाषा हिंदी।
२. आज की हिंदी स्वयं एक त्रासदी है। आज की हिंदी चाय वाली हिंदी ,खोमचे वाले की हिंदी और गोलगप्पे वाले की हिंदी का परिष्कृत रूप है।
३. आपने हिंदी प्रचार सभा को हिंदी की कमर पर वार करने वाला बतलाया है जो सर्वथा अनुचित है। यह अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी के लिए समर्पित लोगों का अपमान है।
४. आप हिंदी के लिए समर्पित प्रबुद्ध साहित्यकार डॉ नामवर सिंह को बर्बर कहकर उनका अपमान करने से भी नहीं चूके और आपने हिंदी पत्रिका हंस पर हिंदी में मोती चुगने वाला हंस एवं हिंदी का भला न करने वाला कहकर अपमान किया है।
५. आपने हिंदी के राष्ट्रभाषा स्वरूप की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठा कर भाषा विवाद उत्पन्न करने का प्रयास किया है।
६. आप तो हिंदी नहीं उर्दू का अपमान करने से भी नहीं चूके हैं। आपने उर्दू को कुंजड़िन की भाषा एवं सब्जीफरोशी की भाषा कहकर उर्दू का भी अपमान किय है।

इन समस्त निकृष्ट लेखन से लगता है कि आप अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने एवं आत्मस्तुति की मानसिकता से ग्रस्त हैं। चाटुकारों का सानिध्य इस प्रकार की प्रवृत्ति को जन्म देता है।
आपसे अपेक्षा की जाती है कि एक लेखक होने के नाते उन समस्त कार्यकलापों से दूर रहे जो लोगों की भावनाओं को आहत करते हैं और विवादों को जन्म देते हैं।
कृपया लेखन की मर्यादा का पालन कर एक लेखक की गरिमा बनाए रखें।

धन्यवाद !

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