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महोदय !
‘चालीसा’ साहित्यिक विधा है और ‘पैरोडी’ एक साहित्यिक प्रवृत्तियाँ है, जो कि नकल नहीं है । गिनती के 40 चौपाई के सम्मिलित रूप को चालीसा कहा जाता है, जिनमें दोहाएं तो उन चौपाइयों के परिचय व दो शब्द या प्रार्थना-मात्र हैं।

कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की ‘सब कहते हैं कुँवर सिंह तो बड़ा वीर मर्दाना था’ शीर्षक लंबी कविता कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान रचित ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी’ शीर्षक कविता की पैरोडी नहीं थी। इन दोनों कविताओं का स्वतंत्र अस्तित्व है, तभी तो दोनों कविताएँ विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालयों की कक्षा-पाठ्यक्रमों में शामिल रही हैं।

‘कोरोना चालीसा’ में कोरोना से संबंधित तथ्यों के अतिरिक्त किसी भी बिम्बों को समाहित नहीं किया है, इसलिए यथाप्रसंग को ‘धार्मिकता’ से जोड़ना बगैर समझ लिए अतार्किकता ही कही जाएगी ! ‘कोरोना चालीसा’ विशुद्ध साहित्य है, उसे इसी लिहाज से पढ़िये/सुनिए और कोरोना कहर से बचने के लिए ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ सहित सुरक्षित और संयमित जीवन अपनाइये ! हृदयश: आमीन।

लगता है आप निम्न स्तर की मानसिकता से ग्रस्त हैं। जिससे आप व्यक्तिगत चरित्र हनन की चेष्टा तक उतर आएं है। मुझे अपने व्यवसाय का कितना ज्ञान है एवं मेरी योग्यता का आकलन आप जैसे निम्न स्तर के व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जा सकता है।

सेम टू यू !

आपत्तिजनक प्रस्तुति।
पवित्र हनुमान चालीसा पर पैरोडी लिखने का निकृष्ट कृत्य। अत्यंत खेद जनक धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती प्रस्तुति।

यदि हिंदू धर्म पर एवं देश की अखंडता पर कुठाराघात के विरोध में सत्य वचन को अनर्गल प्रलाप कहा जाये तो यह निकृष्ट मानसिकता का सूचक है ।

जिनको आप प्रतिनिधित्व कर रहे हैं…..
‘मोदी चालीसा’ और ‘लालू चालीसा’ पर क्यों नहीं कहते !

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