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मजहब के इस भीड़ में ना जाने कितने मुसाफ़िर खो गए , अपने अपने को श्रेष्ठ बनाने में ना जाने कितने रूह रो गए।
शुक्रिया
?
मजहब के इस भीड़ में ना जाने कितने मुसाफ़िर खो गए ,
अपने अपने को श्रेष्ठ बनाने में ना जाने कितने रूह रो गए।
शुक्रिया
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