gjb
बहुत बहुत शुक्रिया जी
बहुत उम्दा ☺☺
Thanks ji
स्त्री लता के समान कोमल होती है और उसे सम्बल की आवश्यकता होती है पुष्पित और पल्लवित होने के लिये। पुरुष यायावर होते है उन्हें स्थिरता प्रदान करता है नारी का स्नेह और सृजन का नैसर्गिक गुण ।एक दूसरे के दोनो पूरक है सम्पूर्ण कोई नहीं । यह नारी का सतत स्निग्ध सम्मोहन है कि बेडियों में डालने वाले को हक की आवाज उठाने वाले में तथा वस्त्र हरण करने वाले को लाज बचाने वाले में परिवर्तित कर देती है।मानव मन की जटिल संरचना को सम्यक् रूप से आत्मसात कर उसे परिमार्जित करने की नारी की यह अद्भुत क्षमता ईश्वरीय वरदान हैं जिससे पुरूष काफी हद तक वंचित है।
दोनो की इच्छाओं की पूर्ति तभी सम्भव है जब रथ के दोनो पहियों प्रगति के राजपथ पर सन्तुलन बना कर चले ,ना कोई छोटा, न कोई बढ़ा। हर मोड़ पर साथ साथ , हर अवरोध पर साथ साथ, दुर्गम पथ पर साथ साथ, हर उत्सव में साथ साथ ,प्रणय में साथ साथ, विषाद में साथ साथ ,जीवन के हर रंग में साथ ,केवल प्रेम नहीं कोई अवसाद।
कविता का उपसंहार आशाओ से परिपूर्ण ,अर्द्धांगिनी की उन्नति की ऊर्ध्वागमनी इच्छाओ से परिपूर्ण यात्रा का जीवन सन्देश है ।
मेरा सफ़र तो
अभी जारी है
और छूना है मुझे
ये सारा आसमान,
तुम यूं ही
साथ चलते रहना,
तभी तो होगा मेरा
ये सफ़र आसान…
इतनी शीघ्र, इतने विभिन्न विषयों पर इतनी अच्छी कवितायें कैसे कोई लिख सकता है ,यह तो सचमुच आश्चर्य चकित कर देता है । पाठकों की बढती संख्या स्वंय प्रमाण है रचनाओं की लोकप्रियता का।
Thanks ji,,,,this poem is dedicated to all men who always remain supportive to women,,,,
सराहनीय।सह अस्तित्व की भावना विशेष रूप से इस सृष्टि के दो बुद्धिमान एवम् समाजिक जीव ,नर और नारी के बीच अनादिकाल से रही है विशेषतः भारतवर्ष में अगर मध्य काल का समय छोड़ दिया जाये।कविता की पृष्ठभूमि समझने में अल्पज्ञ होने के कारण थोड़ी हेर फेर हुई, आशा है क्षमा करेंगे।
सादर अभिनन्दन
नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक भावों को खोजती सुंदर प्रस्तुति।
धन्यवाद !
Thanks ji
बहुत सुंदर सीमा जी बहुत सुंदर
Thankyou ji