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जब कभी हम तुम्हें मुजस्स़िम पाएं। लफ्ज़़- ए- इज़हार गुम़ हो पर आंखों – आंखों में बात हो जाए। व़स्ल की उस घड़ी में व़क्त का पहिया थम कर कर रह जाए।
श़ुक्रिया !
लाजवाब। शुक्रिया
जब कभी हम तुम्हें मुजस्स़िम पाएं।
लफ्ज़़- ए- इज़हार गुम़ हो पर आंखों – आंखों में बात हो जाए।
व़स्ल की उस घड़ी में व़क्त का पहिया थम कर कर रह जाए।
श़ुक्रिया !
लाजवाब।
शुक्रिया