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Comments (11)

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15 Jun 2020 01:02 PM

अति सुन्दर

15 Jun 2020 04:22 PM

Thankyou ji

5 Jun 2020 07:13 PM

मरुस्थल की मरीचिका, भूल भुलैया, बेरुखी में रिहाई के आसार, सहरा में बहार यथार्थ के ऊपर असहायता का परिचायक है।
विशेष परिस्थितियों में किसी की भावनाओं से अजनबी सा व्यवहार करना , किसी के अन्तर्मन के द्वन्द्व का संज्ञान लेकर भी दूर दूर रहना,फिर भी उम्मीद का साथ ना छोड़ना गज़ल का मूल भाव प्रतीत होता है।
कई बार पढने पर मुझ अल्पज्ञ का का यह विचार है जिस पर कुछ सहमति हो तो गजल की आत्मा से आत्मसात होने होने में सहायक होगी।

5 Jun 2020 09:23 PM

लिखने बाले का अपना मत हो सकता है और पढ़ने बारे का अपना, और जब ऐसा हो तो बहुत ही अच्छा होता है ।लिखना सार्थक हो गया समझो।,,,,,बहुत बहुत धन्यवाद

6 Jun 2020 06:23 AM

जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
इसी लिये कवि सम्मेलनों में साधारण श्रोताओं हेतु रचना से पहले कवि थोड़ी सी प्रस्तावना अवश्य देते है
कवि की दृष्टि का भी आभास हो जाये तो रचना का आनंद कई गुना हो जायेगा
आशा है अनुरोध स्वीकार होगा आदरणीया

3 Jun 2020 02:24 PM

अति सुन्दर प्रस्तुति आपको सादर प्रणाम।।

3 Jun 2020 06:04 PM

Thankyou जी

बहुत खूब !

श़ुक्रिया !

3 Jun 2020 10:34 AM

शुक्रिया जी

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

3 Jun 2020 10:34 AM

शुक्रिया जी

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