शब्द तो अंतः करण से उभरते , घुमड़ते , मानस पटल पर संवेदना के स्वर बनते , फिर भावनाओं का जागृत स्वरूप लेकर निखरते , फिर कवि हृदय को बाध्य कर कर उसकी लेखनी से अभिव्यक्ति का सृजन बन उकरते।
शब्द तो अंतःकरण में समाहित है ।
लेखनी का व्यवहार तो भावनाओं से प्रेरित है।
लेखक का मनस भावनाओं का भंडार है ।
और उसका संवेदनशील ह्रदय सृजन का आधार है।
शब्द तो अंतः करण से उभरते , घुमड़ते , मानस पटल पर संवेदना के स्वर बनते , फिर भावनाओं का जागृत स्वरूप लेकर निखरते , फिर कवि हृदय को बाध्य कर कर उसकी लेखनी से अभिव्यक्ति का सृजन बन उकरते।
शब्द तो अंतःकरण में समाहित है ।
लेखनी का व्यवहार तो भावनाओं से प्रेरित है।
लेखक का मनस भावनाओं का भंडार है ।
और उसका संवेदनशील ह्रदय सृजन का आधार है।
धन्यवाद !
धन्यवाद ??