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ऱूदादे दिल की दास्ताँँ कैसे लिखकर पेश करूं । ए़़हसास हर्फ़ो में नहीं सिमटते प़ैकर लिख लिख कर थकते। फिर भी मेरी दास्ताँँ पूरी नहीं होती। काश मेरे साथ तेरी मोहब्बत की ये मजबूरी ना होती।
श़ुक्रिया !
बहुत खूब साहब उम्दा प्रस्तुति
ऱूदादे दिल की दास्ताँँ कैसे लिखकर पेश करूं ।
ए़़हसास हर्फ़ो में नहीं सिमटते प़ैकर लिख लिख कर थकते।
फिर भी मेरी दास्ताँँ पूरी नहीं होती।
काश मेरे साथ तेरी मोहब्बत की ये मजबूरी ना होती।
श़ुक्रिया !
बहुत खूब साहब उम्दा प्रस्तुति