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अज़ीज़ इतना ही रक्खो के जी संभल जाए। इस क़दर भी ना चाहो के दम़ निकल जाए। मोहब्ब़तों में अजब है दिलों को धड़का सा। न जाने कौन कहां रास्ता बदल जाए।
श़ुक्रिया !
वाह , धन्यवाद जी
अज़ीज़ इतना ही रक्खो के जी संभल जाए।
इस क़दर भी ना चाहो के दम़ निकल जाए।
मोहब्ब़तों में अजब है दिलों को धड़का सा।
न जाने कौन कहां रास्ता बदल जाए।
श़ुक्रिया !
वाह , धन्यवाद जी