You must be logged in to post comments.
दुश्मनों के जख्म तो हमने दिल पर पाए हैं । पर अपनों के दिए जख्म़ तो रु़ह पर पाए हैं ।
दिल ए नादान को ये इल्म़ न था के ज़माने की फ़ितरत वादा करके निभाने की नही है ।
श़ुक्रिया !
??
दुश्मनों के जख्म तो हमने दिल पर पाए हैं ।
पर अपनों के दिए जख्म़ तो रु़ह पर पाए हैं ।
दिल ए नादान को ये इल्म़ न था के ज़माने की फ़ितरत वादा करके निभाने की नही है ।
श़ुक्रिया !
??