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यह एक अकाट्य सत्य है कि क्रांतिकारी विचारधारा वाले ही अविष्कारों के जनक थे। जिन्हें समाज ने नाकारा घोषित किया था। यही क्रांतिकारी सोच मानवीय संवेदना की काव्यात्मक प्रस्तुति कविता बन उभरकर उजागर हुई।
अति सुंदर प्रस्तुति का साधुवाद !

Thanks ?? I

23 May 2020 05:31 PM

सबसे पहले इस धांसू कविता के लिए आपको बारम्बार बधाई. आपकी शुरुआती कुछ कविताएं पढ़कर सोचता था कि आप भी इस वेबसाइट के कुछ अन्य रचनाकार की तरह कागज को सिर्फ काला करनेवाली हैं. लेकिन आपकी अन्य काफी कुछ कविताओं के साथ-साथ इस धांसू कविता ने साबित कर दिया कि आप स्वतंत्र सोच के साथ रचना करती हैं, आप एक जीवंत और धड़कती सोच रखनेवाली रचनाकार हैं. आपको बारम्बार अभिवादन. मैं स्वयं तो रचनाकार नहीं हूं लेकिन मुझे पढ़ने में बहुत दिलचस्पी है. खासकर मुझे प्रगतिशील सोच रखनेवाले रचनाकार बहुत प्रभावित करते हैं. ऐसी रचनाओं को पढ़कर मुझे भावनात्मक-वैचारिक ऊर्जा मिलती है. अंत में पुन: एक बार आपको इस धांसू और जानदार प्रगतिशील कविता के लिए धन्यवाद.

23 May 2020 06:38 PM

धन्यवाद की कोई बात नहीं. हम पाठक तो आप लोगों के वैसे भी ऋणी होते हैं. वैसे भी मैं किताबें, कविता संकलन खरीदकर पढ़ता हूं लेकिन आपकी क्वालिटी कविताएं मुफ्त पढ़ने को मिल रही हैं. क्या हमारे लिए यह काफी नहीं है. हां एक बात और चलते-चलते…
आपकी इस कविता का शीषर्क ‘आखिरी बैंच’ के स्थान पर ‘आखिरी बैंचधारी’ या ‘आखिरी बैंचवाले’ ज्यादा उचित होता.

कर देती हूँ change

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