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न किसी की आंख का ऩूर हूं ।
ना किसी के दिल का क़रार हूं ।
जो किसी के काम ना सके मैं वो मुश्त़े गुब़ार हूं।

श़ुक्रिया !

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया।
हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।
ब़र्बादियों का स़ोग मनाना फ़िज़ूल था।
ब़र्बादियों का जश्न मनाता चला गया।

सही … धन्यवाद जी

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