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कलम बागी नहीं होती है। वो तो हमारे इशारों पर नाचती है। हम जैसे उसे नचाएं। अच्छी कविता है । धन्यवाद!
जब जुल्म होता तो कलम भी बागी हो ही जाती जी✍️
यथार्थ की सुंदर प्रस्तुति।
धन्यवाद !
Thanks जी✍️
बहुत खूब ?
कलम बागी नहीं होती है। वो तो हमारे इशारों पर नाचती है। हम जैसे उसे नचाएं। अच्छी कविता है ।
धन्यवाद!
जब जुल्म होता तो कलम भी बागी हो ही जाती जी✍️