Comments (4)
11 May 2020 11:05 PM
सुन्दर रचना ।
धन्यवाद
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Author
12 May 2020 02:29 AM
Thnx
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं।
कभी इस पग में कभी उस पग बंधता ही रहा हूं मै।
मै करता रहा औरों की कही ।
मेरी बात मेरे मन ही में रही।
फिर कैसा गिला जग से जो मिला।
सहता ही रहा हूं मैं।
घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं।
श़ुक्रिया !
धन्यवाद