Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
Comments (5)

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
11 May 2020 11:14 PM

अच्छी रचना ।
धन्यवाद!

Aman 6.1 Author
12 May 2020 12:01 AM

Thanks ji✍️

आपकी रचना में इजहार ए अंदाज़ को मैंने सुधार करने की कोशिश की है।

उठती है एक लहर सी दिल में हाथ में लेता हूं जब मय़ का प्याला।
तेरे इश्क ने इस कदर मारा डूबा मैं तो पीकर हाला।
रह-रह कर कौंधतीं है बिजलियां ज़ेहन में अश्क़ थमते नही त़र हो गया जिस्म़ अश्क़ों में नहा के।
चारों ओर सन्नाटा छाया डूब के रह गया हूं तन्हाईयों में।
दिल की माला में पिरोए थे जो प्यार के मोती टूट कर बिखर कर रह गए है।
कैसे संभालू टूटे दिल को उस कम़सिन बाला के हाथों सब कुछ लुटा कर रह गए हैं।
ज़िंदगी थम कर रह गई है अब तो दिन में भी उजालों से दूर हूं।
क्या करूं कुछ न समझ आए इश्क़ के हाथों मजबूर हूं।
ख़यालों में दहश़त जगाए बहका बहका सा रहता हूं
जैसे किसी ज़हर का नशा हो जिस़्म में कांपता लड़खड़ाता सा रहता हूं।
स्य़ाह पड़ गया है जिस्म़ शायद इश्क़ के ज़हर के अस़र से।
गुम़ हो गए होश जब सोचा इस नज़र से।
अब तो सारा आलम़ घूमता नजर आता है।
मुझ मरीज़- ए – इश्क़ को भूचाल सा आ गया लगता है।

श़ुक्रिया !

Aman 6.1 Author
11 May 2020 08:08 PM

Haha लाजवाब जी,maine तो ye बस गुनगुनाने के लिए लिखी थी Rap type✍️

शब्दों के चयन एवं प्रस्तुति मेंं तारतम्य की आवश्यकता है।
आशा है आप इसके लिए प्रयासरत रहेंगे।
शुभकामनाओं सहित।
धन्यवाद !

Loading...