Comments (7)
10 May 2020 02:59 PM
काश यह लेख समाज के अंधे पत्रकारों तक पहुंचता तो उन्हें कुछ सीख मिल पाती। राधेय जी अनूठा लेखन कौशल समेट रखा है आपने।
वरुणेन्द्र सिंह राधेय
Author
11 May 2020 12:13 AM
बहुत आभार भाई जी।
10 May 2020 12:00 PM
पत्रकारिता में शब्दों की गरीबी और विचारों की गुलामी दिखती है ।।
पत्रकारिता को वास्तविकता का आईना दिखाता यह लेख?
वरुणेन्द्र सिंह राधेय
Author
10 May 2020 12:16 PM
धन्यवाद भाई।
9 May 2020 06:06 PM
उपभोक्तावाद एवं वैश्वीकरण के इस युग मे पत्रकारिता अब सच्चाई और जनसाधारण की भलाई के लिए लड़ने वाले अहिंसक हथियार के रूप में नही वरन सिर्फ एक लुभावना “कैरियर ऑप्शन” बन कर रह गया है जिसका एकमात्र उद्देश्य अर्थलाभ एवं भौतिक सुविधाएं प्राप्त करना रह गया है।
वरुणेन्द्र सिंह राधेय
Author
9 May 2020 08:32 PM
सहमत भाई।
बिकाऊ पत्रकारिता व कलम का पक्षपूर्ण व्यवहार । अत्यंत प्रभावी लेख है राधेयजी?
मेरी कविता ईश्वर पढ़ें और योग्य लगे तो वोट करें?