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बिकाऊ पत्रकारिता व कलम का पक्षपूर्ण व्यवहार । अत्यंत प्रभावी लेख है राधेयजी?
मेरी कविता ईश्वर पढ़ें और योग्य लगे तो वोट करें?

काश यह लेख समाज के अंधे पत्रकारों तक पहुंचता तो उन्हें कुछ सीख मिल पाती। राधेय जी अनूठा लेखन कौशल समेट रखा है आपने।

बहुत आभार भाई जी।

10 May 2020 12:00 PM

पत्रकारिता में शब्दों की गरीबी और विचारों की गुलामी दिखती है ।।
पत्रकारिता को वास्तविकता का आईना दिखाता यह लेख?

धन्यवाद भाई।

9 May 2020 06:06 PM

उपभोक्तावाद एवं वैश्वीकरण के इस युग मे पत्रकारिता अब सच्चाई और जनसाधारण की भलाई के लिए लड़ने वाले अहिंसक हथियार के रूप में नही वरन सिर्फ एक लुभावना “कैरियर ऑप्शन” बन कर रह गया है जिसका एकमात्र उद्देश्य अर्थलाभ एवं भौतिक सुविधाएं प्राप्त करना रह गया है।

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