Thanks
I surely agree with this post,
That’s the reason USA, European countries are more developed than india.
We need to be bit more practical in life and as far as the current situation is concerned our reaserch team should take some advance steps to get rid of this penadamic,
We usually heard that UK, Israel, and other countries has discoverd medicine, why not us
I know our doctors and reaserch are also working hard to find the antitode of covid, but why not we are the first to come with solution..
Need to think of and also required to change the mentally of each citizens of India.
We should honest to ourselves and dedicated toward our work.
In the end I must say ,since we are human being so we must have feeling, but we need to be more practical and should react according to the situation.
In the present pandemic situation developed countries are most hit by the virus infection unable to follow the social distancing norms and lock down norms to prevent infection from spreading to large amount of population.As a result suffered highest number of deaths and affected people.
Comparatively India was prudent enough to apply social distancing norms and lock down in phases to prevent the infection to large number of people. Whatever the spread of infection has taken place is due to ignorance, lack of education and deliberate violations.
Therefore we cannot say that India has not been practical to face the unpresidented pandemic situation.
As far as research and delopment of vaccine is concerned we are making concerted efforts in this direction.
In fact development vaccine is a long drawn process which requires series of tests in development of attenuated strain of virus and clinical trials on subjects to ascertain the efficacy of vaccine to produce antibodies in human body making it immune against virus infection. It is time consuming process which is not possible in short time. Secondly we should understand the fact that unlike bacteria virus is never killed by antibiotic drugs, only it is made ineffective by production of antibodies by human immune system.
Each and every country is working in its own way for finding the solution against virus.
There are few innovative ways has also been devised to treat affected patients.
One is infusion of plasma of covid19 recovered patient in affected individual, which is still in trials stage. The bottle neck is the acceptance of plasma containing antibodies against virus by affected person which may or may not due to diffential blood group of donor and receiver.
Recently Israel scientists have developed a mono antibodies instead of usual cluster antibodies produced by human body as a result of vaccine.
These antibodies when injected to patients are capable of multiplying fast and provide enough immunity in fighting against the covid19 and recovery to normal condition
I think this valuable information will clear all your doubts regarding efforts being made to fight against Covid19.
भावना का महत्व मनुष्य के जीवन में आवश्यक है।
मनुष्य में भावनाएं उसमें निहित संस्कारों से निर्मित होती हैं। भाव विहीन मानव पशु तुल्य हो जाता है।
भावनाओं और विवेक का अपना अपना स्थान एवं महत्त्व है। इन दोनों का समावेश मनुष्य में होना चाहिए। भावातिरेक में लिए गए निर्णय जिसमें विवेक का अभाव होता है हमेशा गलत सिद्ध होते हैं।
अतः भावनाओं की पृष्ठभूमि में विवेकशील निर्णय ही सर्वदा तर्कसंगत मान्य एवं सही सिद्ध होते हैं।
अतः भावनाओं एवं विवेक का सामंजस्य होना समस्याओं के निराकरण में एक अहम भूमिका निभाता है। कोरी भावना से समस्याओं का समाधान नहीं होता और भावना विहीन विवेकशील निर्णय भी अमान्य होकर समस्याओं का समाधान करने में असफल सिद्ध होता है।
हमारे देश की संस्कृति विश्व में सर्वश्रेष्ठ संस्कृति रही है जिसमें मानवीय मूल्यों का महत्व आदिकाल से चला आ रहा है। हम पर बाहरी शक्तियों से सतत वार होते रहे हैं और हमने वर्षों की दासता भी झेली है। परंतु हमारी भारतीय संस्कृति फिर भी अक्षुणः रही है।
जो हमारे देशवासियों की देश प्रेम की भावना एवं संस्कृति के प्रति आस्था का नतीजा है। हम भारतीय हैं इस पर हमको गर्व होना चाहिए।
आप का तात्पर्य यह है कि कर्तव्यों के निर्वाह में भावना का कोई महत्त्व नहीं है। भावना ही कर्तव्यों के निर्वाह का प्रेरणा स्रोत है। यदि हमारी सुरक्षा सैनिकों में देश प्रेम की भावना नहीं होगी तो वह अपने कर्तव्यों का निर्वाह कैसे करेंगे ? उनके लिए वह मात्र नौकरी करने जैसा हो जाएगा। एक सैनिक अपना भविष्य देश की सुरक्षा में इसलिए लगाता है कि उसमें देश प्रेम की भावना है । वह दुश्मन से लड़ कर अपने प्राणों की आहुति भी उसी भावना से देता है । इसी प्रकार एक पुत्र अपने मां-बाप की देखभाल में अपने कर्तव्य का निर्वाह इसलिए करता है कि उसमें मां-बाप के प्रति प्रेम एवं सम्मान है। यदि वह प्रेम व सम्मान नही होगा तो वह अपने कर्तव्य निर्वाह से विमुख हो सकता है या उसके लिए कर्तव्य निर्वाह केवल एक अनुबंध मात्र ही रहेगा या उसमें स्वार्थपरता का अंश होगा।
इसी प्रकार एक शिक्षक अपने विद्यार्थी के भविष्य को सुधारने एवं संवारने हेतु भाव से ज्ञान प्रदान नहीं करेगा तो उसके लिए शिक्षा देना केवल एक नौकरी की जिम्मेदारी निभाना मात्र रह जाएगा।
अतः भावनाविहीन कर्तव्य पालन एक अनुबंध मात्र है ।या एक व्यापारिक मजबूरी या बंधक मजदूरी है।
सिर्फ़ भावना को महत्व देना न्याय संगत नही ,इसमें कर्म का निवेश ज़रूरी है ।
कहते है शुभ कर्म स्वर्ग के दरवाजे का अदृश्य कब्जा है। निष्कर्ष यह कि पश्चिमी देशों में अधिकारों के प्रति अधिक जागरूकता दिखाई देती है, किंतु भारतीय संस्कृति में भाव पर ही अधिक बल दिया गया है। भारत अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कर्तव्य पालन की प्रतीक्षा कर रहा है। यदि सभी अपने-अपने स्थानों पर नियत कर्म करते रहे तो यह धरती एक दिन जरूर स्वर्ग बन जाएगी।
भावो को तर्कों के बाण में प्रस्तुत किया है।।
वास्तविकता के करीब लेख??
आभार आपका मित्र।
भावनाओं से परिपूर्ण भारत को भावना विहीनों ने अपने तरकश के तूणीरों से इतना आहत कर दिया है कि ना चाहते हुए भी विवेक का प्रयोग करना बाध्यता बन गया है वरन् हम गर्त में समाहित हो जाएंगे।
यदि हम अपने परिवार, समाज और देश को सुख तथा समृद्धि की ओर ले जाना चाहते हैं तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वार्थ के परे कर्तव्य-पथ पर चलना ही पड़ेगा।
भावपूर्ण रचना