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प्रेम की परिभाषा , मानव की अभिलाषा
जगत जननी , दुःखहरणी सृष्टि की अनमोल कृति नारी हूँँ मैं।
संकट मोचनी , पापनाशिनी , दावानल बन जाऊं वह वीरांगना चिंगारी हूँँ मैं।

धन्यवाद !

उत्तम रचना।
धन्यवाद!

अति सुन्दर प्रस्तुति ?

बहुत बहुत आभार!

मुश्किलों से किसी की यारी नहीं है
जहां हिम्मत है वहां दुश्वारी नहीं है ।
बढ़िया लिखा ।

जी बिल्कुल सर!
सहृदय धन्यवाद ?

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