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Comments (6)

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मुस्कुराती ज़िंदगी पर एक तरफा प्यार से उम्मीदों पर पानी फिर गया।
वफ़ा की राह में उनके संग अभी चले ही थे कि इश्क़ का सफीना तूफ़ानों में घिर गया।

हम ढूंढते रहे उनको दऱब़दऱ पर वो निकल गए अनजान बनकर।
ग़ैर तो ग़ैर रहे अपनों ने भी किनारा कर लिया।
जिसे चाहा हमने त़हे दिल से वो किसी का हो गया।
उसका क्या कसूर था ये तो मेरी नादान जवानी के एक तरफा प्यार का सुरूऱ था।
ये तो सऱाब-ए-इश्क़ था जिसे मैं हक़ीक़त मान बैठा था।
इश्क़ की नाक़ामियों के चर्चे आम हुए ।
ठोकर खा खाकर होश़ में आए ,
तन्हाईयों में गुम़ हुए ।
सर्द रातों की जुंबिश अब खो सी गई है।
बेवफाई का ग़म गलत करने के लिए मय़नोश़ी आदत सी बन गई है।
जिंदगी गुजर गई अपनी हस्ती तलाशने में , शायद नाकामियों की गर्दिश में मेरा वजूद गुम़ होकर रह गया है।
हर दर्द से सुलग़ता ये बदन अब दर्द की निशानी बनकर रह गया है।
इजहार ए तम़न्ना के लिए चंद अश़आर ही सहारा बनकर रह गए हैं।
हम कभी आशिक़ हुआ करते थे, अब शायर बनकर रह गए हैं।
ग़र आ जाए हमें भी सलीक़ा इब़ादत का।
हो जाए खुदा हम पर म़ेहरब़ान हम पर भी हो क़रम उसका।

Aman 6.1 Author
29 Apr 2020 12:05 PM

वाह वाह✍️

सुंदर प्रस्तुति।

धन्यवाद !

Aman 6.1 Author
29 Apr 2020 09:47 AM

Thanks जी✍️

29 Apr 2020 06:46 AM

अच्छी प्रस्तुति ।
धन्यवाद!

Aman 6.1 Author
29 Apr 2020 09:47 AM

शुक्रिया जी✍️

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