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मैं जमीन पर हूं न समझा न परखना चाहा।
आसमां पर ये कदम झूम के रखना चाहा।
आज जो सर को झुकाया तो मुझे याद आया।
कि मेरे ज़ेहन पे पड़ा था मेरे गुरूर का साया।

श़ुक्रिया !

24 Apr 2020 10:10 PM

आदरणीय आभार |||

आत्म चिंतन युक्त सुंदर प्रस्तुति।

धन्यवाद !

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