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8 Apr 2020 04:41 PM

लक्ष्मण रणभूमि में मेघनाद के तीर से मूर्छित पड़े हैं. राम को उनके उपचार की कोई तरकीब नहीं सूझी तो लंका से वैद्य लाया गया. उसके वैद्य के कहे मुताबिक उन्हें जीवित करने हेतु हनुमान को संजीवनी बूटी लेने किसी द्रोण पर्वत पर भेजा. वे वहां गए पर बूटी न पहचान पाए. तब पूरा पहाड़ ही उठा लाए. उस पहाड़ से बूटी निकालकर लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर की गई.
पहला सवाल : हनुमान से हम हमेशा प्रार्थना करते हैं ‘बलबुधि विद्या देहु मोहि’ तथा उनके बारे में कहा जाता है ‘विद्यावान गुणी अति चातुर’ (हनुमान चालीसा) तथा बाल्मीकि रामायण के अनुसार भी हनुमानजी सारी विद्याओं और ज्ञान में पारंगत थे फिर वैद्यजी की बताई बूटी के लक्षणों को जानकर भी उसे क्यों नहीं पहचान पाए?
दूसरा सवाल : जिन राम ने इंद्रदेव से अमृत वर्षा करवाकर मरे हुए लाखों वानर-भालुओं को एक क्षण में जिंदा करवा दिया. देखिए पंक्ति ‘सुधा वरसि कपि भालु जियाए’ (रामचरितमानस)
फिर रामजी अपने लघु भ्राता लक्ष्मण के समय इंद्र को यह काम क्यों नहीं सौंपते और रात भर विलाप करते रहते हैं. क्या उस समय इंद्र छुट्टी पर चले गए थे या उनकी हांडी का अमृत ही खत्म हो गया था?
एक और प्रसंग पर गौर करें:
समुद्र पार जाते समय मिली सुरसा के प्रकरण में बताया गया है कि हनुमान अपने शरीर को जितना चाहे छोटा या बड़ा बना सकते थे. तब सवाल उठता है तो फिर पुल बनाने की क्या आवश्यकता थी. हनुमान अपना शरीर बढ़ाकर लेट जाते सेना आराम से निकल जाती.

बहुत खूब, आभार

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