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ये कुदरत का कहर है जो सर चढ़कर बोल रहा है इंसानों के फैलाए क़ुफ्र को वक्त की तराजू में तोल रहा है।
श़ुक्रिया !
ये कुदरत का कहर है जो सर चढ़कर बोल रहा है
इंसानों के फैलाए क़ुफ्र को वक्त की तराजू में तोल रहा है।
श़ुक्रिया !