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ज़िंदगी निसार कर दी अपनों की ख़ातिर। मिली जो खुशी उन्हें लुटा कर पाल लिए ग़म अपनी ख़ातिर।
श़ुक्रिया !
बड़े नाज़ुक दौर के रहगूजर से गुजर रहे है हम लिबास बदन पे है और बदन उतार रहे हैं लोग ~ सिद्धार्थ
ज़िंदगी निसार कर दी अपनों की ख़ातिर।
मिली जो खुशी उन्हें लुटा कर पाल लिए ग़म अपनी ख़ातिर।
श़ुक्रिया !
बड़े नाज़ुक दौर के रहगूजर से गुजर रहे है हम
लिबास बदन पे है और बदन उतार रहे हैं लोग
~ सिद्धार्थ