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आपके उच्च विचारों का स्वागत है । परंतु आजकल के दौर में यह संभव हो सकेगा इस पर मुझे संशय है ।इसका कारण यह है कि नई पीढ़ी अपना अधिकांश समय बाहरी लोगों के साथ बिताती हैं । उनके पास परिवार के साथ बिताने का समय नहीं है ।
इन परिस्थितियों में उनमें बाहरी वातावरण और मूल्यों का प्रभाव अधिक पड़ता है । जिससे उनके अंतर्निहित संस्कार एवं पारिवारिक मूल्य प्रभावित होते हैं और वे समूह की मनोवृत्ति का शिकार हो जाते हैं । जिसके फलस्वरूप उनके व्यवहार में बदलाव आ जाता है ।और वे पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों को रूढ़िवादिता और पिछड़ापन मानने लगते हैं ।
इन परिस्थितियों में उनमें पारिवारिक मूल्यों एवं संस्कारों के सृजन का प्रयास दुरूह सिद्ध होता है।

धन्यवाद !

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