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7 Mar 2020 10:22 AM

समाज के प्रति आक्रोश,वेदना ,बैचैनी से भरी बहुतअच्छी कविताए पड़ने के बाद उत्सव ,गर्व,सक्षम आदि पॉजिटिव भावों से युक्त कविता में एक सुखद परिवर्तन मिला।अच्छा लगा।

पृकृति से पुरुष तो सदैव से यायावर रहा है और स्त्रियाँ अपनी कोमलता के कारण घर,परिवार और अपनों के सुरक्षा कवच मे रहने का प्रयास करती है और लता की तरह वृक्ष का संबल पा प्रफुल्लित हो जाती है ।

पर मेरे विचार से नारी मे जो सृष्टि उत्पन्न करने का बिशेष
वरदान है,उस सन्तीति की सुरक्षा हेतु ईश्वर ने इस सुन्दर गुण का आशीर्वाद दिया है जिससे जन्म लेने से समर्थ होने तक अपनों के बीच सुन्दर, सुरक्षित वातावरण में उसका शारिरिक व मानसिक विकास हो।

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ विशेषतः “आंख की नमी ” का सम्बंधो को सहेजने हेतु प्रयोग नवींन लगा

सबको रखती हूं
स्वार्थवश सहेज कर
आंखों की नमी

आज फुर्सत में कुछ अधिक लिख दिया। आशा है अन्यथा नहीं लेंगी।

7 Mar 2020 11:03 AM

Ji अन्यथा लेने का प्रश्न ही नहीं….always welcome

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