आपके विचारों से मैं सहमत हूं बच्चों में संस्कार विहीनता के लिए उनके पालक ही दोषी है ।
धन उपार्जन को अपना लक्ष्य समझने वाले पालक समझते हैं कि वे अपने बच्चों को धन से हर खुशी खरीद कर दे सकते हैं । इसमें वे भूल जाते हैं कि बच्चों में संस्कार के बीज बचपन मैं बोए जाते हैं ।जिसमें घर के बड़े बूढ़ों का बहुत बड़ा योगदान रहता है जिन घरों में बड़े बूढ़े नहीं होते वहां बच्चों में संस्कारविहीनता आ जाती है ।
इसका कारण मां बाप मैं बच्चों को देने के लिए समय का अभाव रहता है । जिसके फलस्वरूप बच्चे नौकरों और दाईओ के संरक्षण में पलते और बड़े होते हैं और बचपन से ही गलत आदतों के शिकार और जिद्दी हो जाते हैं । अतः यह आवश्यक है कि समय रहते पालक इस विषय में सावधान रहें और समय-समय पर बच्चों की प्रगति पर ध्यान दें उनमें संस्कारों का विकास करें अन्यथा बाद में पछताने से कोई फायदा नहीं है ।
धन्यवाद !
आपके विचारों से मैं सहमत हूं बच्चों में संस्कार विहीनता के लिए उनके पालक ही दोषी है ।
धन उपार्जन को अपना लक्ष्य समझने वाले पालक समझते हैं कि वे अपने बच्चों को धन से हर खुशी खरीद कर दे सकते हैं । इसमें वे भूल जाते हैं कि बच्चों में संस्कार के बीज बचपन मैं बोए जाते हैं ।जिसमें घर के बड़े बूढ़ों का बहुत बड़ा योगदान रहता है जिन घरों में बड़े बूढ़े नहीं होते वहां बच्चों में संस्कारविहीनता आ जाती है ।
इसका कारण मां बाप मैं बच्चों को देने के लिए समय का अभाव रहता है । जिसके फलस्वरूप बच्चे नौकरों और दाईओ के संरक्षण में पलते और बड़े होते हैं और बचपन से ही गलत आदतों के शिकार और जिद्दी हो जाते हैं । अतः यह आवश्यक है कि समय रहते पालक इस विषय में सावधान रहें और समय-समय पर बच्चों की प्रगति पर ध्यान दें उनमें संस्कारों का विकास करें अन्यथा बाद में पछताने से कोई फायदा नहीं है ।
धन्यवाद !
बहुत बहुत धन्यवाद श्याम je