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हवा किसी एक वतन की नहीं होती ।
यह किसी मिट्टी और मिट्टी में फर्क भी नहीं करती।
यह बहती आज़ाद होकर ना है इसकी कोई बंदिशें ।
ना है इसके दिल में कोई रंजिशें।
ना है इसके दायरे ना है इसके फासले।
सरहदों से क्या यह रुकेगी अपनी ही धुन में बहती जाएगी ।
गर नाराज़ हो जाये तो कहर बरपा जाएगी।
धन्यवाद !

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