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तुम क्या रूठे जिंदगी में मुझसे रूठ गई । कुछ थी तुम्हारी बंदिशें कुछ थे मेरे दायरे यह सोचकर दिल को मना लिया कि न तुम थे बेवफा ना हम थे बेवफा। यह सब मुकद्दर का खेल था कि वक्त ने हमारा साथ न दिया जिसने हमें जुदा कर दिया।
श़ुक्रिया !
वाह, बहुत खूब ??
तुम क्या रूठे जिंदगी में मुझसे रूठ गई ।
कुछ थी तुम्हारी बंदिशें कुछ थे मेरे दायरे
यह सोचकर दिल को मना लिया कि न तुम थे बेवफा ना हम थे बेवफा।
यह सब मुकद्दर का खेल था कि वक्त ने हमारा साथ न दिया जिसने हमें जुदा कर दिया।
श़ुक्रिया !
वाह, बहुत खूब ??