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Comments (5)

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26 Jan 2020 11:51 AM

Nice poem

28 Jan 2020 06:56 PM

Thanks a lot Dimple Khari ji…

1 Feb 2020 03:31 PM

Thank you sir meri poem ko like krne k liye

चाहे तू मुझे घाय़ल कर दे अपनी ठोकर से समझ संगेराह मुझे।
पर गुरेज़ कर अपनी कोशिश से मिटाने मुझे।
मैं ख़ाक सही मैं राख़ सही पर अभी भी मुझ में वोआग बाक़ी है।
जो जला कर रख देगी तेरा आश़ियाना ।
तूने मेरा अस़र अभी तक नहीं है जाना ।

श़ुक्रिया !

9 Jan 2020 08:30 PM

Thanks a lot Sir ji….

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