Comments (5)
9 Jan 2020 07:23 PM
चाहे तू मुझे घाय़ल कर दे अपनी ठोकर से समझ संगेराह मुझे।
पर गुरेज़ कर अपनी कोशिश से मिटाने मुझे।
मैं ख़ाक सही मैं राख़ सही पर अभी भी मुझ में वोआग बाक़ी है।
जो जला कर रख देगी तेरा आश़ियाना ।
तूने मेरा अस़र अभी तक नहीं है जाना ।
श़ुक्रिया !
आर एस आघात
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9 Jan 2020 08:30 PM
Thanks a lot Sir ji….
Nice poem
Thanks a lot Dimple Khari ji…
Thank you sir meri poem ko like krne k liye