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आपके प्रस्तुत विचारों से मै सहमत हूँ। कालांतर में छात्र संगठनों का उपयोग राजनीतिज्ञों द्वारा अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जाने लगा है ।जिसके फलस्वरूप छात्र संगठनों में राजनीति से प्रेरित और दबदबा रखने वाले दबंग और अनुशासनहीन पदाधिकारियों का वर्चस्व होने लगा है ।जो तथाकथित नेताओं की कठपुतली बनकर छात्र वर्ग को बरगला कर बदनाम करने में जुटे हुए हैं ।
यह एक विचारणीय विषय है कि शिक्षण संस्थाओं में एक विशेष छात्र वर्ग इन सब गतिविधियों से दूर रहकर अपना ध्यान अध्ययन मैं केंद्रित रखकर अपना अध्ययन संपन्न करना चाहता है ।
परंतु उसे समय-समय पर इस प्रकार व्याप्त अनुशासनहीन आंदोलनों का हिस्सा बनाकर अपने अध्ययन कर्म से वंचित रख कर प्रताड़ित किया जाता रहा है। अतः समस्त छात्र वर्ग को अनुशासनहीनता की श्रेणी में लाकर उनका आकलन गलत होगा।
यह आवश्यक है कि छात्रों में गलत तत्वों का पता लगाकर उन्हें इस प्रकार की अवांछित गतिविधियों से रोकना होगा ।
जहां तक मेरा विचार है इसके लिए बहुत हद तक विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय प्रशासन भी दोषी है ।
जिनका कर्तव्य है कि उन सभी तत्वों को उनके मूल पर पहचान कर उनकी गतिविधियों का निषेध करे ।जो छात्रों के हितों की रक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालें। जहां तक मेरा संज्ञान है विश्वविद्यालय और महाविद्यालय के उच्चाधिकारी इस विषय में निष्क्रिय एवं निरापद रहते हैं ।उन्हें अपने पद की चिंता रहती है। क्योंकि छात्र संगठन पर कार्रवाई करने पर उन पर राजनैतिक और प्रशासनिक दबाव पड़ने लगता है। अतः वे किसी विवाद में पड़ना नहीं चाहते है ।

आपके सामयिक विषय पर सारगर्भित लेखन का साधुवाद !

5 Jan 2020 10:42 PM

धन्यवाद आदरणीय ?

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