Comments (3)
4 Jan 2020 04:47 PM
अब तल़क पूछते फिरते थे तेरा पता सारे ज़माने से परेश़ाँ होकर ।
पूछेंगे अब अपनी बेख़ुदी मे हम अपना पता इस ज़माने से परेजाँ होकर ।
श़ुक्रिया !
आलोक कौशिक
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5 Jan 2020 10:43 PM
वाह!
क्या बात!
धन्यवाद आदरणीय ?
आलोक कौशिक सर जी ग़ज़ल की बहर क्या है? ज़रा बताने की कृपा करेंगे!