Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
Comments (2)

You must be logged in to post comments.

Login Create Account

दरअसल जनसाधारण में
व्याप्त अंधविश्वास, एवं रुढ़िवादिता भीड़ की मनोवृत्ति का परिचायक है जिसमे व्यक्तिगत सोच का कोई स्थान नही होता। यदि कोई अपनी व्यक्ति सोच का पालन करने साहस करता भी है तो उसके प्रयास को समाज तथाकथित ठेकेदारों द्वारा उस के मूल पर दबा दिया जाता है और वह व्यक्ति विशेष सामाजिक भृर्त्सृना का शिकार हो जाता है ।हमारे देश मे जाति,धर्म,वर्ग,वर्ण, परम्परा और संस्कृति के नाम सामाजिक ताना बाना इतना जटिल बना दिया गया है कि एक साधारण व्यक्ति को उसके विरुद्ध जाने पर विद्रोही करार दिया जाता है। अतः कुछ विरले ही इन सब रूढ़ीवादी मान्यताओं और परम्पराओं के विरुद्ध जाने का साहस जुटा पाते हैं।
आपके सारगर्भित लेखन का स्वागत है।यह एक सामाजिक सोच में परिवर्तन की अलख जगाने का पुनीत प्रयास है ।
साधुवाद !

29 Dec 2019 01:30 PM

धन्यवाद सर

Loading...