प्यार मे जीत हार का फ़र्क कहाँ ।
प्यार मे हारे भी तो जीत है जहाँ ।
प्रेम है तो अहंकार कहाँ ।
प्रेम है तो शूल भी लगते फूल जहाँ ।
जब फँसो भँवर में थाम लो साहस की पतवार ।
ग़र डूबना नहीं तुम्हें बीच मँझधार ।
जागृत करो नवचेतना से मनस को ।
त्याग दो अंतःकरण के कलुष को ।
द्वेष अग्नि शांत हो शीतल प्रेम सरिता से।
जागृत हो नवचेतना जनमानस में नव ज्ञान से।
प्यार मे जीत हार का फ़र्क कहाँ ।
प्यार मे हारे भी तो जीत है जहाँ ।
प्रेम है तो अहंकार कहाँ ।
प्रेम है तो शूल भी लगते फूल जहाँ ।
जब फँसो भँवर में थाम लो साहस की पतवार ।
ग़र डूबना नहीं तुम्हें बीच मँझधार ।
जागृत करो नवचेतना से मनस को ।
त्याग दो अंतःकरण के कलुष को ।
द्वेष अग्नि शांत हो शीतल प्रेम सरिता से।
जागृत हो नवचेतना जनमानस में नव ज्ञान से।
आपकी रचना से प्रेरित होकर मेरा प्रयास।
धन्यवाद