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कहाँ गया वो ज़मीरे आदमियत और खिलाफ़े ज़लाल़त क़ुर्बानी का वो जज़्बा। अब तो इन्तज़ार है मुझे उस चिंगारी का जो डाल दे जान इन ज़िन्दा लाश़ो मे थूक इस ज़हर को और फैलने से पहले। श़ुक्रिया
आभार आदरणीय
कहाँ गया वो ज़मीरे आदमियत और खिलाफ़े ज़लाल़त क़ुर्बानी का वो जज़्बा। अब तो इन्तज़ार है मुझे उस चिंगारी का जो डाल दे जान इन ज़िन्दा लाश़ो मे थूक इस ज़हर को और फैलने से पहले।
श़ुक्रिया
आभार आदरणीय