जब समाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। तब शिक्षक भी उससे अछूता नही रह सकता। शिक्षा का पर्याय यदि धन कमाना हो जाए तब शिक्षण व्यापार बन जाता है । विद्यार्जन को धनोपार्जन की कुंजी मान लिया गया है। ज्ञानवर्धन नही । जिसके लिये जनसाधारण की मानसिकता भी दोषी है केवल शिक्षक नही।
ज्वलंत मुद्दे पर प्रस्तुत विचार का स्वागत है ।
धन्यवाद !
जब समाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। तब शिक्षक भी उससे अछूता नही रह सकता। शिक्षा का पर्याय यदि धन कमाना हो जाए तब शिक्षण व्यापार बन जाता है । विद्यार्जन को धनोपार्जन की कुंजी मान लिया गया है। ज्ञानवर्धन नही । जिसके लिये जनसाधारण की मानसिकता भी दोषी है केवल शिक्षक नही।
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आभार आदरणीय