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धर्म के आधार शरणार्थियों में अन्तर करना सरासर गलत है। कोई भी शरणार्थी किन विकट परिस्थितियों से गुजरकर किसी दूसरे देश में शरण लेने के लिये मज़बूर होता उसकी कल्पना नही की जा सकती । दरअसल संकीर्ण मनोवृत्ति के लोग उनकी तुलना अप्रवासिओं से करने लगते जो एक शरणार्थी की व्यथा को समझे बिना असंवेदनशील होकर उसकी भावनाओं को धर्म, संप्रदाय और जाति की तराजू मे तौलने लगते हैं। जो कि सर्वथा गलत है जिसका घोर विरोध और भृर्त्सना होना चाहिए। यह एक अमानवीय विचारधारा है और किसी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की मूलभूत सिद्धान्तों का हनन् है । जो किसी भी दशा में स्वीकार्य नही है। किसी राजनैतिक लाभ एवं धर्म विशेष के तुष्टीकरण की यह नीति सर्वथा असंवैधानिक एवं अमान्य है।
आपके प्रस्तुत विचारो से मैं सहमत हूँ ।
धन्यवाद !

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