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पाँव ज़मी पर हों तभी अपनी मंज़िल पाओगे। गर भूलकर अपनी हस्ती उड़ोगे अर्श में तो फ़र्श पर खुद को पाओगे। मौत का खौफ़ नही तो ज़िन्दगी का दर्द क्या ? मौत बनेगी महबूबा हँसते हँसते संग जायेंगे । अन्दाज़े बयां का शुक्रिया !
पाँव ज़मी पर हों तभी अपनी मंज़िल पाओगे।
गर भूलकर अपनी हस्ती उड़ोगे अर्श में तो फ़र्श पर खुद को पाओगे।
मौत का खौफ़ नही तो ज़िन्दगी का दर्द क्या ?
मौत बनेगी महबूबा हँसते हँसते संग जायेंगे ।
अन्दाज़े बयां का शुक्रिया !