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करत नही निज कर्म जो रहत मन संकोच । डूबत है तब शर्म में बनत कारण निज संकोच। रचना का धन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद?? आ०जी
करत नही निज कर्म जो रहत मन संकोच ।
डूबत है तब शर्म में बनत कारण निज संकोच।
रचना का धन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद?? आ०जी