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दुविधा मे दोनो रहे । कुर्सी मिली न दाम। अब मुँह की खाकर बोलें ये क्या हुआ? कैसे हुआ? कब हुआ? क्यू्ँ हुआ? बौखलाये से फिरते हैं ये तथाकथित महान ।
सटीक व्यंग का स्वागत !

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