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5 Jun 2021 02:36 AM
जनाब आपकी ग़ज़ल के मतले में बंदिश है, अतः सिमटती, चलती जैसे काफिये खारिज़ है। हार्दिक शुभकामनाएं
अरविन्द राजपूत 'कल्प'
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22 Jul 2021 10:26 PM
जी शुक्रिया,
सही कहा आपने
शाम को सुबह -ए-चमन याद आई ,
किस की खुश़बू -ए-बदन याद आई ,
याद आए तेरे पैकर के ख़ुतूत ,
किस की कोताही-ए-फ़न याद आई ,
दिन श़ुआओं में में उलझते गुज़रा ,
रात आई तो किरन याद आई ,
चांद जब दूर उफ़क में डूबा ,
तेरे ग़ेसू की थकन याद आई ,
श़ुक्रिया !