Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
Comments (3)

You must be logged in to post comments.

Login Create Account

शाम को सुबह -ए-चमन याद आई ,
किस की खुश़बू -ए-बदन याद आई ,
याद आए तेरे पैकर के ख़ुतूत ,
किस की कोताही-ए-फ़न याद आई ,
दिन श़ुआओं में में उलझते गुज़रा ,
रात आई तो किरन याद आई ,
चांद जब दूर उफ़क में डूबा ,
तेरे ग़ेसू की थकन याद आई ,
श़ुक्रिया !

जनाब आपकी ग़ज़ल के मतले में बंदिश है, अतः सिमटती, चलती जैसे काफिये खारिज़ है। हार्दिक शुभकामनाएं

जी शुक्रिया,
सही कहा आपने

Loading...