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वाह, बहोत खूब,
अगर अन्यथा न ले तो इसे कुछ ऐसे लिखे की शेर मुक्कमल हो?
ख़ुद से ख़ुद में ही है उलझी सी, हमारी जिंदगी,
दीखती आज़ाद लेकिन कैद-सी, हमारी ज़िन्दगी।
कश्मकश के जाल में हर शख़्स कितना उलझा हुआ,
की दायरों ही दायरों में घूमती रही, हमारी ज़िन्दगी।।
???

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