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मरीज ए मोहब्बत उन्हीं का फसाना सुनाता रहा दम निकलते निकलते
अभी खा के ठोकर संभलने न पाए तो फिर खाई ठोकर संभलते संभलते ।

श़ुक्रिया !

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