अंतरात्मा को हमने मन का गुलाम बना का दिया है। न चाहते हुए भी हम सामाज और रिवाज़ के नाम पर उसकी आवाज़ को दबाकर नीती विरुद्ध कार्य करने के लिये विवश हो जाते हैं। आपके इस संदर्भ में उद्गगार प्रशंसनीय हैं।
You must be logged in to post comments.
अंतरात्मा को हमने मन का गुलाम बना का दिया है।
न चाहते हुए भी हम सामाज और रिवाज़ के नाम पर उसकी आवाज़ को दबाकर नीती विरुद्ध कार्य करने के लिये विवश हो जाते हैं।
आपके इस संदर्भ में उद्गगार प्रशंसनीय हैं।