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18 Dec 2016 01:00 PM

तारीफ़ क्या करूँ,
क्या कहूँ मैं तुम्हे निर्भया,
मन पर बोझ,माथे पर कलंक,
दरिंदगी का लहराता ये परचम,
क्या लिखूं,किसकी करू मैं निंदा
वो डूबे राज मद में,कर रहे अब शाही धंध नपुंसक समाज ये बेहया शाही,
क्या कहूँ,इस कलम को भी कैसे रोकूँ,भूलूँ भी जो खुद को,लेखन धरम मैं कैसे भूलूँ,
क्या लिखूं किसकी करूँ मैं निंदा,सत्ता नही,न शाही कोई,कलम में वो पुरुषार्थ नही,उन जख्मो को क्या कुरेदुं,
इस कलम से उसे कैसे भर दूँl
तारीफ़ क्या करूँ,क्या कहूँ में निर्भया,जो कर सको तो बस माफ़ करो,हम,शर्मिंदा,शर्मिंदा और शर्मिंदा

ज्यादे पढ़ा लिखा नही हूँ, इसलिए हर जगह यही एक कविता रोता हूँ l

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धन्यवाद जी

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