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हिंदी की हिंदी करने में हिंदुस्तानी नागरिकों का ही बड़ा हाथ है । ये ऐसी समृद्ध और सांस्कृतिक भाषा है जो संस्कृत के बाद सबसे ज्यादा पूर्ण है और इसमें सभी संबंधों को आदर प्रदान करने की क्षमता भी है । पर हम हिंदुस्तानी जो गुलाम भाषा के कुछ शब्द बोलने में अपने आप को बड़ा महसूस करते है और समाज भी इनको अवांछित महत्व देता है जो बिल्कुल नही होना चाहिये । जो मात्र भाषा की गोद मे पलकर बड़े होते है ज्यादा संस्कारी होते है । हिंदी बढ़ाओ,देश बढ़ाओ

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